Tuesday, June 3, 2008

समय का पहिया
चलते चलते
कहाँ कहाँ से गुज़र गया...
खट्टे मीठे
टेड़े मेड़े
हर रस्ते पर....
यहाँ वहां  के
हर अनुभव को
यूंही सहता सहता गया
पीछे मुड़ कर देखूं तो
सब सपना सा लगता है
कुछ अपना, कुछ शायद अपना
कुछ बेगाना लगता है...
वो जो मेरे साथ चले थे
अब भी साथ में हैं लेकिन
कुछ छूट गए
कुछ चले गए
कुछ भूलेबिसरे हो गए...
यादों का कमरा खाली सा
दांत दबा कर हंस देता है
समय का पहिया
घूम घूम कर
यूं ही चलता रहता है...

किरन




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